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अध्याय ७२
"फिर सिद्धगिरि की यात्रा को "
र्मा की समाप्ति के बाद महाराज श्री आनन्दविजयजी ने शिष्य परिवार के साथ श्री सिद्धाचलजी की यात्रा के लिये अहमदाबाद से पालीताणा की ओर विहार कर दिया । ग्रामानुग्राम विचरते हुए पालीताणा पधारे। वहां एक मास तक निरन्तर श्री आदीश्वर भगवान के दर्शनों के लिये ऊपर पहाड़ पर
रहे। और गुजरात देश के धनीमानी सेठ प्रेमाभाई हेमाभाई, सेठ नरसी केशवजी, सेठ वीरचंद दीपचंद सी. आई. ऐस. आदि श्रावक समुदाय की मदद से, ३५ जिन बिम्ब-जो कि बड़े ही सुन्दर और आकर्षक थे, पंजाब के भिन्न भिन्न शहरों में भिजवाये । इनके वहां पहुंचने से पंजाब के जैन समुदाय में धर्म की अधिक
ति हुई । उन लोगों ने इन विशाल जिन बिम्बों को प्रतिष्ठित करने के लिये अपने अपने शहर में विशाल जिन भवन बनाने का आयोजन किया। और थोड़े ही समय में पंजाब का हर एक नगर गगन चुम्बी जिन भवनों से सुशोभित हुआ । पंजाब के अनेक प्रसिद्ध नगरों में निर्मित हुए इन मन्दिरों में श्री तीर्थंकर देवों की भव्य प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित करने का पुण्य कार्य भी आपके कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ । आपश्री के स्वर्गवास के बाद जिन मन्दिरों की प्रतिष्ठा रह गई थी वह आपके शिष्य वर्ग द्वारा सम्पन्न हुई ।
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