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________________ नवयुग निर्माता आत्मारामजी के प्रवचन रूप पुष्करावर्त मेघ ने जो अपूर्व शांति पहुँचाई है वह अहमदाबाद के जैन समाज प्रति उनकी बड़ी से बड़ी देन है । इधर श्री शांतिसागरजी, भास्कर भगवान के उदय होते ही निस्तेज होकर अस्ताचल की ओर भागते हुए चन्द्रमा की भांति श्री आत्मारामजी के परमतेजस्त्री व्यक्तित्व के आगे हतप्रभ होकर सभा से उठे और चुपचाप अपने स्थान की ओर चल पड़े । २०० अब उनके प्रवचन में न तो पहले सा प्रभाव रहा और न उनकी व्याख्यान परिषद् में पहले सी रौनक दिखाई देती । अन्त में वे जिस पर्दे की ओट में भोले जीवों को अपने माया जाल में फंसाते थे वह दम्भपूर्ण साधुता का पर्दा महाराज श्री आत्माराजी के सत्यपूर्ण प्रवचनास्त्र के प्रहार से कट गया और शांतिसागरजी अपने वास्तव स्वरूप में नग्न रूप से जनता को दीख पड़ने लगे । तात्पर्य कि उन्होने साधुवेष को छोड़कर एक धनिक स्त्री की दी हुई हवेली में निवास करना आरम्भ कर दिया। गृहस्थ के वेष में आ के बाद उनके द्वारा दिये गये पहले उपदेशों की वास्तविकता का जनता को जब अनुभव हुआ तब वह अपने भोलेपन पर अधिक से अधिक पश्चाताप करने के साथ २ श्री आत्मारामजी की भूरि २ प्रशंसा करने लगी । श्री शांतिसागरजी के इस कर्तव्य को देख कर उनके गुरु श्री रविसागरजी महाराज को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने अहमदाबाद में विचरना अर्थात् आना ही छोड़ दिया। कोई भी धर्म नेता कितना भी अच्छा वक्ता हो, उसके प्रवचन में कितना भी माधुर्य और आकर्षण हो परन्तु जब तक उसके मनमें कोई स्वार्थ या सांसारिक प्रलोभन रहा हुआ है उसका पतन अवश्यम्भावी है, फिर वह शीघ्र हो या कुछ दिन बाद । इसी का यह फल हुआ कि सांसारिक प्रलोभन के वशीभूत हुए श्री शांतिसागर ऊपर से नीचे गिरे । अतः धार्मिक नेता का सांसारिक प्रलोभनों से ऊंचा उठकर पूर्णरूप से संयम शील होना ही उसके जीवन का उज्ज्वल आदर्श है । उसी के आधार पर वह आत्मविकास में प्रगति करता हुआ दूसरों के लिए आदर्श श्रथच मार्ग दर्शक बनता है। महाराज श्री आत्माराम जी को जो अपने कार्य में सफलता मिली उसका हेतु भी सांसारिक प्रलोभनों से ऊंचा उठा हुआ मानस था । यही आदर्श साधु जीवन है । अहमदाबाद के चातुर्मास की यह विशेषता महाराज श्री आत्माराम - श्री आनन्द विजयजी के आदर्श व्यक्तित्व को चिरस्थायी रखने के लिये जैन परम्परा के इतिहास में असाधारण स्थान प्राप्त करेगी । श्री शांतिसागर के माया जाल में फंसी हुई अबोध जनता को वहां से छुड़ाकर सन्मार्ग की ओर जाने और धर्म पर स्थिर करने का उन्होंने [ श्री आनन्दविजयजी ने ] जो काम किया है वह कुछ कम महत्व नहीं रखता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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