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________________ अध्याय ४० "आत्माराम से आनन्दविजय" -: V दीक्षा के लिये नियत किये गये दिन में अहमदाबाद समस्त जैन संघ के श्रागेवानों के समक्ष शास्त्रविधि के अनुसार सं० १९३२ के आषाढ में श्री आत्मारामजी की दीक्षा का कार्य सुचारु रूप सम्पन्न हुआ। महाराज श्री बुद्धिविजयजी ने श्री आत्मारामजी के मस्तक पर वासक्षेप डालते हुए एक सुयोग्य शिष्य के गुरु बनने का श्रेय प्राप्त किया और महाराज श्री आत्मारामजी ने श्री बुद्धिविजयजी के चरणों में आत्मनिवेदन करते हुए एक आदर्श गुरु को प्राप्त किया। इस प्रकार दोनों ही गुरु शिष्य एक दूसरे को प्राप्त करके अपने आपको भाग्यशाली मानने लगे । और श्री विश्वचन्दजी आदि अन्य साधुओं ने इस शास्त्रीय दीक्षाविधि में श्री आत्मारामजी के चरणों में आत्मनिवेदन करते हुए अपनी अन्तरंग श्रद्धा का परिचय दिया अर्थात् श्री आत्मारामजी को गुरु धारण किया । वासक्षेप देते समय वृद्ध गुरु श्री बुद्धिविजयजी ने जन्म के नाम से भिन्न नामकरण की प्रथा को मान देते हुए श्री आत्मारामजी को "आनन्द विजय" इस नाम से सम्बोधित करने की घोषणा की और बाकी साधुओं को भी विजयान्त वाले विभिन्न नामों से सम्बोधित करने का आदेश दिया । इस प्रकार नामकरण में विभिन्न नामों से निर्दिष्ट हुए सर्व साधुओं के पुराने नामों के साथ नये नाम की तालिका नीचे दी जाती है - Jain Education International पुराना [१] श्री आत्मारामजी - श्री आनन्द विजयजी । [२] श्री विश्नचन्दजी - श्री लक्ष्मी विजयजी | [ ३ ] श्री चम्पालालजी श्री कुमुद विजयजी । [ ४ ] श्री हुकमचन्दजी - श्री रंग विजयजी । For Private & Personal Use Only नया www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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