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________________ अध्याय २८ "प्रत्यक्ष सहयोग" -::चौमासे बाद लुधियाना से विहार करके श्री आत्मारामजा होशयारपुर पधारे, और अम्बाले का चतुर्मास पूरा कर के श्री विश्नचन्दजी भी होशयारपुर पहुंचगये । यहां भी अमरसिंहजी के कितने एक साधुओं में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को देखकर श्री विश्नचन्दजी के मन को बहुत खेद पहुंचा, उन्होंने पूज्य श्री अमरसिंहजी के पास जाकर कहा-महाराज ! चतुर्थव्रत का भंग करनेवाले इन भ्रष्टाचारियों को अपने यहां रखना उचित नहीं है इन्हें अपने समुदाय से बाहर कर देना चाहिये ! इनके कारण सभी साधुओं को लांछन लग रहा है । परन्तु पूज्यजी साहब ने इस कथन पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया । बल्कि यह कहा कि तुम लोग उन साधुओं से द्वेष रखते हो तुमारी श्रद्धा भ्रष्ट हो गई है इसलिये तुमारा रास्ता अलग और हमारा अलग है जाओ हम इस विषय में तुमारी कोई भी बात नही सुनेंगे । तब श्री विश्नचन्दजी आदि बारां साधुओं ने मिलकर पूज्यजी से फिर अर्ज की और बड़ी नम्रता से कहा कि महाराज ! आप सर्व साधु मंडल के नेता हैं आपको हमारी इस नम्र प्रार्थना पर अवश्य ध्यान देना चाहिये । जब पूज्यजी ने फिर भी उनकी बात मानने से इनकार कर दिया तब सब ने जरा उत्तेजित से होकर कहा कि पूज्यजी साहब ! आपने हमारी उचित प्रार्थना को भी ठुकरा दिया है, स्मरण रक्खें आपको पीछे से बहुत पश्चात्ताप करना पड़ेगा। उस वक्त हमारी बात का आपको ख्याल आवेगा । जब इन शब्दों का भी उनके हृदय पर असर नहीं हुआ तो सबने उनसे अलग होजाने में ही अपने आत्मा का हित समझा और उनसे अलग होकर श्री आत्मारामजी के पास आगये। उगके पूज्यजी से सदा के लिये अलग होकर आजाने का समाचार सुनते ही श्री आत्मारामजी बोले-तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया, अभी अलग होने का अवसर नहीं था। ___ श्री विश्नचन्दजी-महाराज ! आप जो कुछ फर्माते हैं ठीक है परन्तु आप सत्य जानें, हमने पूज्यजी साहब को बहुत समझाया, बड़ी नम्रता से समझाया और अन्त में धमकी भी दी मगर वे टस से मस नहीं हुए । इसमें हम सब निर्दोष हैं अलबत्ता भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर रहना हमें पसन्द नहीं था इसलिये पूज्यजी साहब से हमने अपना सम्बन्ध तोड़ लिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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