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________________ अध्याय २७ साधु कन्हैयालाल का भाग्योदय और. पूज्यजी का ज्वर प्रलाप Jain Education International -₹22222 श्री विश्नचन्दजी आदि साधु यद्यपि अलग स्थान में उतरे हुए थे परन्तु श्री आत्मारामजी के धर्म प्रवचन को वे निरन्तर श्रवण करने जाते। इनमें कन्हैयालाल नाम का एक साधु था जो कि न तो कभी आत्मारामजी के व्याख्यान में जाता और न कभी उनकी कही हुई बात को ही सुनता। उसे किसी साधु ने ऐसी ऊंधी पट्टी पढ़ा रक्खी थी कि आत्माराम धर्म से पतित होगया है और वह स्थान स्थान पर ज़हर के पेड़ लगा रहा है। उसके पास जाना अपने समकित का नाश करना है । परन्तु – “स्त्रियाश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्यः " इस अभियुक्तोक्ति के अनुसार जब उसके किसी पूर्व जन्म के पुण्य का उदय हुआ तो उसकी इस हठीली मनोवृत्ति में कुछ विवेक का उदय हुआ वह दो चार साधुओं के कहने से एक दिन श्री आत्मारामजी का प्रवचन सुनने को गया और मन से उन्हीं का हो गया। महाराज श्री आत्मारामजी की उस दिन की निर्मल प्रवचन वारिधारा ने कन्हैयालाल के हृदय का सारा आन्तरिक मल धो डाला । व्याख्यान उठते ही वह बोल उठा कि कौन कहता है कि आत्मारामजी ज़हर के बूटे लगा रहे हैं ? इनकी अमृतमयी वाणी में तो मृतप्राय हृदयों में जीवन संचार करने की शक्ति है । यह तो कोई अलौकिक महापुरुष है मुझे ईर्षालु साधुओं ने इनके सदुपदेश से वंचित रक्खा जिसका मुझे अधिक से अधिक शोक है, अस्तु अब तो इन्हीं की शरण में रहकर शेष जीवन में शुद्ध सनातन जैनधर्म का अनुसरण करते हुए अपनी आत्मा को सद्गति का भाजन बनाने का यत्न करूगा । तदनन्तर व्याख्यान सभा से उठकर श्री आत्मारामजी को वन्दना करके कन्हैयालाल अपने स्थान पर आया और मन में कुछ विचार करने ' बाद अपने गुरु भाई गणेशजी से बोला कि "तुम जो मेरे दूसरे साधुओं के पास से अनिष्टाचरण कराते हो और खुद भी करते हो ऐसा करना जैन मत के किस शास्त्र में लिखा है। यातो मुझे शास्त्र का पाठ बतलाओ नहीं तो इसका प्रायश्चित करो ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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