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अध्याय २४
श्री रामवक्षजी से काताला"
दूसरे दिन श्री पंजूमल आदि पांच सात श्रावकों ने सलाह मशवरा करके पटियाले में विराजमान पूज्य श्री अमरसिंहजी के शिष्य श्री रामबक्षजी के पास जाने का निश्चय किया और उनके पास पटियाले पहुंच गये।
वन्दना नमस्कार करने और सुखसाता पूछने तथा इधर उधर की कुछ बातें करने के बाद श्री पंजूमलजी ने उनकी सेवा में उपस्थित होने का प्रयोजन बतलाते हुए निम्न लिखित प्रश्नों का समाधान करने की प्रार्थना की :(१) महाराज ! अपना यह ढूंढक पंथ श्री महावीर स्वामी की किस गच्छपरम्परा में से है ? कारण
कि ठाणांग सूत्र में भगवान के जिन नौ गणों-गच्छों का उल्लेख है उनमें तो अपने पंथ का कहीं
नाम है नहीं। (२) श्री लौंकाजी से पहले जैन परम्परा में मूर्तिपूजा प्रचलित थी याकि नहीं ? अगर प्रचलित थी तो
वह शास्त्र विहित थी या शास्त्र बाह्य ? यदि शास्त्र विहित थी तो उसका लौंकाजी ने निषेध क्यों किया ? यदि शास्त्र बाह्य थी तो लौंकाजी से पहले भी जैन परम्परा के किसी विशिष्ट आचार्य ने उसका प्रतिवाद किया ? किया तो किसने ? और यदि नहीं किया तो क्यों ? श्री लौकाजी पहले स्वयं तीर्थंकर प्रतिमा की पूजा करते और मस्तक पर तिलक लगाते थे। ऐसा उनके जीवन
चरित्र से प्रमाणित होता है, पीछे से उन्होंने मूर्तिपूजा का खंडन किया सो किस आधार पर ? (३) लौंकाजी आगमों के पूरे जानकार थे इसके लिये आपके पास कोई पुष्ट प्रमाण है ? क्या लौंकाजी
ने संस्कृत या प्राकृत का कोई ऐसा निबन्ध या ग्रन्थ लिखा है जिससे उनकी विद्वत्ता और योग्यता का माप किया जा सके?
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