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________________ पूज्यजी साहब के आदेश का सत्कार १५३ = महाराज ! यह तो बहुत बड़ा है, इस में किस बात का वर्णन आता है ? श्रावक ने ज़रा साहसपूर्वक पूछा। ___ श्री श्रआत्मारामजी ज़रा हंस कर-यह तो अभी आधा है, इतना और है। इसमें साधु के छै आवश्यकों का वर्णन किया गया है । पंजूमल-तो क्या महाराज ! उस दिन आपने जो कहा था कि ११ अंग १२ उपांग ४ मूल ४ छेदसूत्र यह कुल ३१ हुए और ३२ वां आवश्यक, इस प्रकार ये ३२ सूत्र कहे व माने जाते हैं । तो क्या यहवही बत्तीसवां सूत्र है ? श्री आत्मारामजी बाहरे भाई ! तुमने तो खूब याद रक्खा । हां यह वही ३२ वां सूत्र है, परन्तु अपने लोगों का आवश्यक तो मन घडत और घर घर का अलग २ है, वह भी गुजराती मिश्रित खिचड़ी सा । जब कि गणधर देव ने सारे सूत्रों की रचना अर्द्धमागधी-प्राकृत भाषा में की है तो आवश्यक सूत्र भी उसी भाषा में निबद्ध होना चाहिये । यह जो आवश्यकसूत्र तुम्हारे सामने पड़ा है इसका मूल प्राकृत में है और इस पर श्री हरिभद्रसूरि की जो टीका है वह संस्कृत में है। तथा पंचम श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहु की इस पर नियुक्ति है । भाष्य और चूर्णी उससे अलग हैं। पंजूमल-आपने मूर्तिपूजा सम्बन्धि अनेक पाठ ३२ सूत्रों में से निकाल कर बतलाये जिन में भी श्री ज्ञातासूत्र, राजप्रश्नीय, व्याख्या प्रज्ञप्ति और उपासकदशा तथा औपपातिक आदि कई एक अन्य सूत्रों के पाठ तो दिखलाये किन्तु आवश्यक सूत्र का कभी नाम नहीं लिया। तो क्या इस में मूर्तिपूजा को प्रमाणित करनेवाला कोई पाठ नहीं है ? मेरे ख्याल में तो इसमें होना भी नहीं चाहिये क्योंकि आपके कथनानुसार इसमें साधु के छ आवश्यकों का वर्णन है जो कि केवल साधु के कर्तव्य के निर्देशक हैं, और मूर्तिपूजा से साधु का कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि वह गृहस्थ के लिये है। श्री आत्मारामजी-नहीं भाई ऐसा नहीं ! साधु के लिये भी भावरूप से जिनप्रतिमा की उपासना का विधान है, इसके अतिरिक्त गृहस्थ के द्वारा की जानेवाली द्रव्यपूजा की अनुमोदना करने का भी शास्त्र में विधान है । इसी उद्देश्य से आवश्यक सूत्र में साधु के लिये उसका विधान किया है । लो देखो आवश्यक सूत्र का यह मूल पाठ, इसे पढ़ो और इसके परमार्थ को मसझो । पंजूमल-महाराज ! हम इस योग्य होते तो आपको इतना कष्ट ही क्यों उठाना पड़ता ? कृपा करके आप ही मूल पाठ और उसका परमार्थ सुनाकर हमें अनुगृहीत करें। श्री आत्मारामजी-अच्छा सुनो ! आवश्यक सूत्र का यह पाठ इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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