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नवयुग निर्माता
भाष्य में चार प्रकार के चैत्यों [साधर्मिक चैत्य, मंगल चैत्य शाश्वत चैत्य और भक्ति चैत्य] का उल्लेख किया है * तथा इन उल्लेखों को सर्वथा अनुवाद रूप कहना या मानना भी उचित नहीं है । आगमगत वर्णनशैली के अनुसार ये भी विधायक कोटि में पर्यवसित होते हैं। राजप्रश्नीय सूत्र का पहला उल्लेख[जिसमें सिद्धायतन का वर्णन है] वस्तु स्थिति का बोधक है । दूसरे और तीसरे में कर्तव्य कर्त्तव्यानुष्ठान और उसकी विधि का निर्देश है । इसलिए व्याख्या प्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, और राजप्रश्नीय तथा जीवाभिगम सूत्रों के उपर्युक्त उल्लेख जहां अनुवाद रूप हैं वहां विधायक भी हैं कारण कि आगमों में गृहस्थधर्म के प्राचारनियमों को प्रायः अनुवाद रूप में ही दर्शाया गया है । इसके अतिरिक्त उपासक दशा और औपपातिक सूत्र के उल्लेख तो स्वरूप से ही मूर्तिवाद के विधायक हैं । इस पर भी यदि हमारे मत या पंथ के महारथी साधु-मुनिराज यह कहें कि मूल आगमों में मूर्तिपूजा सम्बन्धी एक भी वाक्य देखने में नहीं आता, तो उन महापुरुषों के इस दृष्टि रोग की क्या चिकित्सा करनी चाहिये इसका विचार तुमने अपने स्थान पर जाकर करना ।
इस सारी ज्ञान गोष्टी का श्रेय मालेरकोटला को प्राप्त हुआ जब कि १६२१ के चतुर्मास में महाराज श्री आत्मारामजी वहां पर विराजमान थे और श्री विश्नचंद और चंपालालजी आदि साधुओं का चतुर्मास भी वहीं पर था।
* इनके स्वरूप का वर्णन पहले किया जा चुका है देखो पृष्ट ३७
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