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नवयुग निर्माता
श्री चम्पालालजी -भगवन् ! श्री भगवती जी के उस पाठ की भी कृपा करो ! ताकि उसको सुनकर हमारे हृदय का रहा सहा सन्देह-मल भी धुल जावे और उसकी स्वच्छता में हम प्रभु मूर्ति के दर्शन का श्रेय प्राप्त कर सकें।
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श्री आत्मारामजी - भाई चम्पालाल ! तुम धैर्य रक्खो जब मैं इस विषय का प्रतिपादन करने को तैयार हुआ हूँ तो कुछ बाकी नहीं रक्खूंगा। लो सुनो ! लब्धि सम्पन्न मुनियों की यात्रा विषयक यह प्रश्नोत्तर जहां मूर्तिवाद का समर्थक है वहां मनोरंजक भी है। वह पाठ इस प्रकार है
प्रश्न - विज्जाचारणस्स गं भंते । तिरियं केवतियं गति विसए पन्नते ?
उत्तर - गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पारणं माणुमुत्तरे पव्वए समोसरणं करेति माणु. २ करेत्ता तहिं चेहयाई वंदति, तहिं २ वंदित्ता वितिएणं उप्पारणं नंदीसरवरे दीवे समोसरणं करेति नंदी सु. २ करेता तहिं चेहयाई वंदति तहिं वंदित्ता तत्रोपड़िनियत्तति इहमागच्छ, श्रागच्छत्ता इह चेहयाई वंदति । विज्जाचारणस्स णं गोयमा ! तिरियं एवतिए गति सिए पन्नत्ते"
भावार्थ - लब्धिसम्पन्न विद्याचारण की तिर्यक् और ऊर्ध्वगति विषयक प्रश्न पूछते हुए गौतम स्वामी कहते हैं - हे भगवन् ! विद्याचारण की तिर्यक् तिरच्छी गति का विषय कितना है ? इसके उत्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी फर्माते हैं - गौतम ! वह विद्याचारण एक उत्पात से ( कदम से ) मानुषोत्तर पर्वत पर समवसरण -स्थिति करता है अर्थात वहां पहुँचता है वहां पहुँचकर वहां पर विद्यमान चैत्यों अरिहंतप्रतिमाओं) को वन्दना करता है, वन्दना करके दूसरे उत्पात से नन्दीश्वर द्वीप में पहुँचता है, पहुँचकर वहां पर रहे हुए चैत्यों को वन्दना करता है वन्दना करके फिर वह यहां आता है और यहां के चैत्यों को वन्दना करता है । हे गौतम ! विद्याचारण की तिरछी गति का एतावन् मात्र विषय कहा है ।
$ प्रश्न - विज्जाचारणस्स णं भंते ! उड्ढं केवतिए गति विसए पन्नत्ते ?
+ छाया - प्रश्न - विद्याचारणस्य णं भगवन् ! तिर्यक् कियान गति विषयः प्रज्ञप्तः ?
उत्तर -- गौतम ! स इतः एकेन उत्पातेन मानुषोत्तरे पर्वते समवसरणं करोति मानुषोत्तर पर्वते समवसरणं कृत्वा तत्र चैत्यानि वन्दते तत्र चैत्यानि वंदित्वा द्वितीयेन उत्पातेन नन्दीश्वरवरे समवसरणं करोति, नन्दीश्वरवरे समवसरणं कृत्वा तत्र चैत्यानि वंदते तत्र चैत्यानि वंदित्वा ततः प्रति निवर्तते ततः प्रतिनिवृत्त्य अत्र आगच्छति अत्र श्रागत्य अत्र चैत्यानि वन्दते । विद्याचारणस्य यां गौतम ! तिर्यग् एतावान् गति विषयः प्रज्ञप्तः ।
$ छाया - प्रश्न - विद्याचारणस्य णं भगवन ! ऊर्ध्व कियान गति विषयः प्रज्ञप्तः
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