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________________ धन्यवाद पंजाब केसरी, अज्ञानतिमिरतरणि, कलिकाल - कल्पतरु स्वर्गीय जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजयबल्लभसूरीश्वरजी द्वारा लिखित अन्तिम ग्रन्थ रत्न 'नवयुग निर्माता' पाठकों के हाथ में है । यह ग्रन्थ न्यायाम्भोनिधि, प्रातःस्मरणीय स्व० जैनाचार्य श्रीमद् विजयानन्दसूरिजी प्रसिद्ध नाम “श्री आत्मारामजी महाराज" की जीवन घटनाओं और निष्काम सेवाओं पर ही नवीन प्रकाश नहीं डालता, बल्कि इसमें जैन आगमों का साररूप नवनीत इस कुशलता के साथ उपस्थित किया गया है कि पाठकों को जैन धर्म चार सम्बन्धी कई बातों का ज्ञान सरलता से हो जाए। मैंने १६२१-३० ई० में उर्दू में 'आत्मचरित्र' लिखा था जिसे श्री आत्मानंद जैन महासभा की र से प्रकाशित किया गया था। उस समय मुझे उनके जीवन के सम्बन्ध में सबसे अधिक सामग्री व परिचय गुरुदेव श्री विजयवल्लभसूरिजी से ही प्राप्त हुआ था मैंने गुरुदेव से विनती की थी कि वे स्वयं गुरुवर श्री आत्मारामजी का जीवनचरित्र विस्तारपूर्वक लिखकर जैन शासन का उपकार करें। किन्तु धार्मिक, सामाजिक कार्यों में अत्यधिक व्यस्त थे। उनके जीवन का एक एक क्षण जैनधर्म के प्रचार, शिक्षणसंस्थाओं की स्थापना और प्राणी मात्र की सेवा के लिए अर्पित था। समय की कमी के कारण उन्होंने सेवक को इस महान कार्य के लिए उत्साहित किया। संघ की ओर से उन्हें लगातार प्रार्थना की जाती रही कि वे स्वर्गीय श्री आत्मारामजी के जीवन व कार्यों के विषय में अधिक से अधिक प्रकाश डालें । फलतः १६५१ ई० में पालीताना के चातुर्मास के समय आपने इस महान् कार्य का श्रीगणेश कर दिया और बम्बई के चातुर्मास में वह पूर्ण हो गया। पाठक शायद जानते होंगे कि स्त्र० गुरुदेव श्री आत्मारामजी को इस पवित्र तीर्थ पर १६४३ वि० सकल श्रीसंघ ने आचार्य पदवी से विभूषित किया था और समय श्री विजयवल्लभ 'लगन' नामक नवयुवक के रूप में दीक्षार्थी बन वहां उपस्थित थे था कि यह अन्त: प्रेरणा उस मुक्तिधाम पर स्फुरित होती । जैनाचार्य श्री विजयवल्लभसरि Jain Education International For Private & Personal Use Only जम www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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