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छोटे बच्चे से उम्र में बड़ा । वह मृदु एवं स्निग्ध होता है । उदानं में इसके और अर्थ इस प्रकार हैं - कोई कहते हैं यह नर्म चावल ( ओदन) को पाँच गोरस से जूस पकाने के विधान का नाम हैं, जैसे गोपान ( गवपान) पाक का नाम है । कोई कहते हैं शूकर मार्दव नामक रसायन विधि है, वह रसायन शास्त्र में आती है । उसे चुन्द ने भगवान का परिनिर्वाण न हो, इसके लिये तैयार कराया था ।१
कुछ इस शब्द का अर्थ सूअर का मांस न लेकर सूअरों द्वारा कुचले गये बाँस के अंकुर से लेते हैं ।
चतुरसेन शास्त्री का कहना है " चेदी लुहार ने भगवान को भोजन के लिये निमंत्रण दिया और उसे मीठे चावल, मीठी रोटियाँ तथा कुछ सूखा, सुअर का माँस खिलाया । गौतम दरिद्रों की वस्तुओं को कभी अस्वीकार नहीं करता था, परन्तु सूअर का माँस उसकी इच्छा के विरुद्ध था लेकिन बुद्ध ने उस भोजन को भी खा लिया और तभी से उसे अतिसार का रोग हो गया ।"
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श्री चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु लिखते हैं- "भगवान भिक्षु संघ समेत चुन्द के घर पधारे । चुन्द ने भगवान को नाना भाँति के भक्ष्य भोज्य और शूकर माँस जो उसने तैयार किया था, परसना आरम्भ किया था । तब भगवान बोले - हे चुन्द तुमने जो शूकर माँस तैयार किया है वह केवल हमीं को परसना और दूसरे सब प्रकार के व्यंजन राव भिक्षु संघ को परसना, क्योंकि यह शूकर माँस का तुम्हारा उपहार हमारे सिवाय दूसरा कोई भी ब्रह्मा, श्रवण, ब्राह्मण ऐसा नहीं है जो ग्रहण करे ।" १
१. उदानं - चुन्द सुत्तं प्र. ८५, सम्पादक- रा. सा., आ. को.; ज. क.
२. बुद्ध और बोद्ध धर्म - आचार्य चतुरसेन शास्त्री पृ० ९२ ३. भगवान गौतम बुद्ध - चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु पृ० २३८-९
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