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________________ “यह सूचना देवताओं के प्यारे राजा पियदसी की आज्ञा से खुदवाई गई है । यहाँ इस पृथ्वी पर कोई किसी जोव धारी जन्तु को बलिदान अथवा भोजन के लिये न मारे । राजा पियदसो ऐसे भोजन में बहुत से पाप देखता है । पहले ऐसे भोजन की आज्ञा थी और देवताओं के प्रिय राजा पियदसी के रसोईघर में तथा भोजन के लिए प्रतिदिन हजारों जीव मारे जाते थे। जिस समय यह सूचना खोदी जा रही है, उस समय उसके भोजन के लिये केवल तीन जीव अर्थात् दो मोर और एक हिरण मारे जाते हैं और उनमें से हिरण नित्य नहीं मारा जाता । भविष्यत् में ये तीनों जीव भी नहीं मारे जायेंगे।" एक अन्य लेख है "देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इस प्रकार बोला--अपने राज्याभिषेक के २६वें वर्ष से मैंने निम्नलिखित जीवों के मारे जाने का निषेध किया है अर्थात्-शूक, सारिका, अस्न, चक्रवाक, हंसनंदिमुख, गैरन; गैलात, (चमगादड़), अम्बक, पिल्लिक, दद्धि, अनस्थिक मछली, वेदबेयक, गंगानदी के पुपुत, शंकुज, कफत, शयक, पमनशश, शीमल, शंदक, ओकपिंड, पलसत, सेतकपोत ग्राम कोपत और सब चौपाये जो किसी काम में नहीं आते और खाये नहीं जाते, बकरी, भेड़ी और शूकरी जब गाभिन हो व दूध देती हो व जब तक उनके बच्चे छ महीने के न हों, न मारो जाये । लोगों के खाने-पीने के लिये मुर्गी को खिलाकर मोटी न करनी चाहिये। जीते हुए जानवरों को नहीं जलाना चाहिये। जंगल चाहे असावधानी से अथवा उसमें र मे व ले जानवरों को मारने के लिये जलाये नहीं जायेंगे। तीनों चतुर्मासों की पूर्णिमा को पूर्णिमा के चन्द्रमा का तिस्य नक्षत्र से और पुर्नवसु नक्षत्र से योग होने पर चन्द्रमा के चौदहवें और पन्द्रहवें दिन और पूर्णिमा के उपरान्त वाले दिन और साधारणतः प्रत्येक उपोसथ दिन में किसी को मछली मारनी व चेचनी नहीं चाहिए। प्रत्योक पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा को और तिस्य पुन वसु और तीनों चातुर्मासों की पूर्णिमा के दूसरे दिन किसी को साँड, बकरा, भेड़, सूअर व किसी दूसरे बधिये कियो जाने वाले जानवरों को बधिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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