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भगवान ने न केवल, वच, काया से जीव हिंसा का निषेध किया वरन, जीव - हिंसा का दुष्फल नरक गमन बताया। संयुक्त निकाय में गामणी संयुक्त के पाटली सुत्त में भगवान पाटली ग्रामणी को कहते हैं
"ग्रामणी में जीव-हिंसा को भी जानता हूँ और जीव- हिंसा के फल को भी । जीव - हिंसा करने वाला मरने के बाद नरक में उत्पन्न हो दुर्गति को प्राप्त होता है, यह भी जानता हूँ ।" १
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कवतार सूत्र जिसे जापान के डॉ० ननजिओ ने प्रकाशित किया है, जिसमें भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ हैं, लिखा है
"लाभार्थ हन्यते प्राणी, मांसार्थ दीयते धनम् । उभौ तौ पापकर्माणौ पच्येते रोखादिषु ॥ तस्मान्मांसं विवर्जयता ॥ अर्थात् लाभ के लिये प्राणी मराता है, मांस के लिये धन दिया जाता है, वे दोनों पापी रौरवादि में पकाये जाते हैं, अतः माँस का त्याग करें ।
सत्य ही तो है निर्दोष पशुओं को अपने पेट के लिये काटने पर नर्क नहीं तो क्या स्वर्ग मिलेगा ! ऐसे हिसको के लिये ही तो शास्त्रकार कहते हैं
पर उस हिंसक जीव को मिला नरक का धाम । बाँध अग्नि में डाल के मारे मार बेकाम ॥
बुद्ध की शिक्षाओं का ही प्रभाव था कि अशोक महान की दृष्टि में केवल मनुष्य ही नहीं अपितु पशु भी अबध्य था उसका जीवन उतना ही मूल्यवान और पवित्र था जितना कि मनुष्य का । यही कारण था कि जिस रसोई में कभी हजारों की तादाद में पशु मारे जाते थे, उसने स्वयं अपनी रसोई में माँ वर्जित कर दिया और शनै शनं. अपने राज्य से ही पशु-वध उठा लिया अशोक के शिलालेख उसकी उदारता की पुष्टि के सबल प्रमाण है । प्रमाण पुष्टि के लिये एक-दो शिलालेखा यहाँ देना उचित रहेगा
१. संयुक्त निकाय - हिन्दी अनुवाद जगदीश कश्यप, धर्म रक्षित भाग १
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