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________________ ( ६७ ) सात-सात सौ बैलों,बछड़ों की बलि देने पर कृषि की क्या हालत होती होगी? कृषक कैसे करूण क्रन्दन करता होगा? फिर यदि ऐसे अमानुषिक अत्याचारों के विरूद्ध बुद्ध ने आवाज उठाई तो उन्हें वेद निन्दक कहना क्या अनुचित बुद्ध का विचार था कि यज्ञ में पशु-वध करने से यजमान मन, वचन, काया से अकुशल कर्मों का आचरण करता है। इस सम्बन्ध में अंगुत्तर निकाय के मुत्तक निपात में उद्गत शरीर ब्राह्मण का वर्णन आता है जो महायज्ञ को तैयारो करके पांच सौ बैल, बछड़े, बछिया, बकरे, मेढ़ यज्ञ में बलि देने के लिये यूपों में बाँधकर भगवान के पास उनका फल पूछने जाता है तो भगवान यह उत्तर देते हैं—जो यज्ञ प्रारम्भ करता है उसके मन में यह अकुशल विचार आता है कि इतने बैल, बछड़े, इतनी बछिया, बकरे और मेढ़ मारे जाये । इस प्रकार वह सर्वप्रथम दुखोत्पदान अकुशल मन रूपी शस्र उठता है फिर प्राणियों की हत्या के लिए आज्ञा देकर अकुशल वचन रूपी शस्र उठाता है अनन्तर प्राणियों को मारनेके लिये काय शस्र उठाकर मारना शुरू करता है । इस प्रकार यज्ञ में पशुओं को मारने वाला मन, वचन काया से पाप का भागी बनता है । ऐसे अमंगलकारी यज्ञों का महात्मा बुद्ध ने निषेध किया। - बुद्ध द्वारा कैसे यज्ञों की अन मति : बुद्ध ने यज्ञों की निन्दा नहीं की अपितु उसमें होने वाले प्राणि-वध की निंदा की। वे अनुमति देते हैं-अहिंसामय यज्ञों की। यहाँ दीघनिकाय के कुटदन्त सुत्त का प्रसंग देना उचित होगा। एक समय भगवान पांच सौ भिक्षुओं के महा भिक्षु संघ के साथ मगध देश में विचरते हुए खाणुमत नामक ब्राह्मण ग्राम में पहुचे । उस समय कुट. दन्त ब्राह्मण ने महायज्ञ के लिये सात सौ बैल, सात सौ बछिया, सात सौ बछड़े, सात सौ बकरे, सात सौ भेड़े यज्ञ के लिये इकट्ठे किये थे । खाणुमत के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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