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________________ ( ३६ ) मनुष्य मांसाहारी नहीं थे। परन्तु खास कारण से फल-मूल आदि का अभाव होने से उनकी पशु-माँस में प्रवृत्ति हुई थी। साथ ही उनका यह भी कहना है कि मांसाहारी प्राणियों के नख और दाँत जिस प्रकार के होते हैं वैसे मनुष्यों के नहीं होते इससे उन्हें अपना जीवन निर्वाह करने के लिये कृत्रिम उपाय उत्पन्न करने की आवश्यकता हुई। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य की प्रकृत्ति फलाहारी ही है लेकिन जैसे-जैसे काल का अतिक्रम होता गया वैसे-वैसे मनुष्यों में कारणों को लेकर नयी-नयी कला और उद्योगों का आविर्भाव हो गया। साथ ही साथ अनिवार्य कारणों से आहार व्यवहार में भी परिवर्तन हुआ। ___ ऐसे ही समय परिवर्तन के कारण अज्ञानी मनुष्यों में माँसाहार की प्रवृत्ति चल पड़ी, जिसे बाद में उन्होंने अपने भोजन का आवश्यक अंग बना लिया जबकि वस्तु-स्थिति तो यह है कि मांसाहार मनुष्यों की स्वाभाविक खुराक है ही नहीं। बारीकी से देखने पर भी निष्कर्ष यही निकलता है कि माँसाहारी प्राणियों जैसी एक भी स्वाभाविक वस्तु मनुष्य के पास नहीं है । यथा मांसाहारी जीवों की भोजन प्रणाली बहुत ही छोटी होती है अर्थात् बदन की लम्बाई से तिगुनी लम्बी और अंतडिया चिकनी होती हैं इस कारण शारीरिक त्याज्य वस्तुएँ जल्दी सड़कर बहुत ही थोड़ी देर में इस प्रणाली से बाहर निकल जाती हैं। मनुष्य की यह भोजन प्रणाली बदन की लम्बाई से बारह गुणी लम्बो होती है और आँतें थलीनुमा होती हैं । इस कारण त्याज्य वस्तुएँ बहुत देर बाद मल के रूप में निकलती हैं। इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य के लिये माँस का आहार जो बहुत जल्दी सड़ने वाला है, अनुकूल नहीं है। माँसाहार प्रतिकूल ही नहीं बल्कि खतरनाक भी है जिसके कारण बहुत भयंकर रोग मनुष्य के शरीर में फूट पड़ते है । डॉक्टरों का मत है कि माँसाहारी चार सौ प्रकार की प्राण घातक बीमारियों से ग्रस्त होते हैं जबकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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