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________________ ( १५६ ) आपने इतनी छोटी वय में गजब की मेहनत की है। अनेक सन्दर्भ ग्रन्थ देख लिये हैं। आज की सरकार और उनके लालची अधिकारी वर्ग को पढ़नी चाहिये । हमारा हृदय पत्थर का हो गया है, करोड़ों पशु कटते हैं । अब तो कोई नया बुद्ध, महावीर या कृष्ण मात्र भारत को बचा सकता है । पुन धन्यवाद ! क्षु. चित्तसागरजी दिनांक ५-९-९२ शांतिनाथ दि. जैन मन्दिर हिम्मत नगर-गुजरात ४. पुस्तक अति उपयोगी है। बहुत श्रम उठाया है। नया प्रकाश मिलेगा। दिनांक २२-८-९१ आचार्य यशोदेव सूरिजी साहित्य मन्दिर पालीताना ५. डॉ. नीना जैन, स्नेहाशीष ! आपकी लिखित पुस्तक “मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति पर जैन सन्तों का प्रभाव" पढ़कर गौरवान्वित हुआ। आपने जो प्रमाण Quote किये हैं, स्वयं सिद्ध है, जैन तत्व को समझाने में आपका प्रयास सराहनीय है। भविष्य में आपसे हमें बहुत आशाएं हैं, इष्ट देव आपकी मदद करे । उमेदभल जैन आपका धर्म स्नेही शत्रुञ्जय ३१० झोकनबाग उमेद मल (एडवोकेट) झाँसी (उ. प्र.) ६. प्रस्तुत पुस्तक कु. नीना जैन द्वारा आपने शोध प्रबन्ध का आधार है। इस पुस्तक को पढ़ने पर भारत के ५०० वर्ष प्राचीन इतिहास की जानकारी भली प्रकार से हो जाती है। भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक दिशा को प्ररूपित करते हुए लेखिका ने पुस्तक में छ: अध्याय दिये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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