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( १५५ ) २. किसी धर्म के अतीत के अध्ययन का महत्व केवल उस धर्म के विशेष तक सीमित नहीं रहता, उसका अपना महत्व भी है । “मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति पर जैन सन्तों का प्रभाव" प्रस्तुत ग्रन्थ का अध्ययन करने पर ५०० वर्ष का प्राचीन इतिहास जिसमें राजनैतिक, सांस्कृतिक दिशा को रोचक तथ्यों तथा ज्ञानवर्धक सामग्री की जानकारी हो जाती है। वह कि मुगलकाल में जैन धर्म, आचार्य परम्परा, सम्राट अकबर की धार्मिक नीति, जैन अचार्यों एवं मुनियों के सम्पर्क से प्रभाव, जहाँगीर की धार्मिक नीति, जैन सन्तों से सम्पर्क व ज्ञानवर्धक सामग्री से परिपूर्ण ग्रन्थ हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ अपना विशिष्ट स्थान रखता है। लेखिका-कु. नीनाजी द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ लिखकर अतीत की अनजानी गहराइयों में डूबकर जैन धर्म के इतिहास की थाह लेना और उनमें से अनमोल रत्नों को ढूंढ निकालना सरल कार्य नहीं है । अत: अपनी प्रतिभा, परिश्रम एवं त्याग के द्वारा ग्रन्थ लिखकर विद्वानों, शोधकर्ताओं, जैन मुनिराजों एवं ग्रन्थागारों के लिये संग्रहनीय है तथा अभिनन्दनीय है।
प्रकाशक श्री काशीनाथ जो शराक संयोजक-श्री विजय धर्म सूरि समाधि मन्दिर द्वारा इस सत् प्रयास के लिये शुभकामनाएँ प्रदर्शित करता हूँ। दिनांक १-८-९२
निवेदक भीकम शाह, 'भारतीय' जैन
हिन्दी पत्रकार, अजारी ३. डॉ. नीना वेन,
आज ही आपकी पुस्तक पढ़कर पूर्ण किया। मुसलमान दयालु थे इतने आज हिन्दू दयालु नहीं हैं। भारत का भाग्य अब अस्त होने जा रहा है। भौतिकता की चौंध में सारी प्रजा डूब जायेगी और सम्पूर्ण अन्धकार-अज्ञानता का पतन का सर्वत्र छा जायेगा।
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