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________________ ( १४४ ) ऐसा ही शंका एक समय पू. आत्माराम जी (विजयानन्द जी) से जीरा में किसी सज्जन के प्रश्न करने पर गुरुदेव ने उसका समाधान इन शब्दों में किया- “यद्यपि यह सत्य है कि रुधिर ही दुग्ध के रूप में परिणित होता है परन्तु परिणित होने से दूध में रुधिरत्व नहीं रहता, रुधिर का पदार्थान्तर हो जाता है । इसलिये दूध पीने में वह दोष नहीं जो रुधिर पीने में है। यदि रुधिर और दूध एक ही पदार्थ हो तो जैसे रुधिर को देखने से स्वाभाविक घृणा उत्पन्न होती है। वैसे ही दूध से भी होनी चाहिये । संसार में दूध पीने वाले को क्या कोई रुधिर पीने वाला कहता है ?" प्रश्नकर्ता स्वयं ही निर्णय करलें। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज अपने लेख "शाकाहार के सूर्य पर मांसाहार की धूल छा गई" में वर्तमान प्रशासन पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखते हैं-"हम तनिक भी प्रशासन के विरोध में नहीं हैं, फिर भी प्रशासन हमारी संस्कृति के खिलाफ क्यों जा रहा है ? सत्ता और व्यापार मिलकर दूध को मांसाहार और अण्डों को शाकाहार क्यों कह रहे हैं ? क्या कभी अण्डे वृक्ष से फलते हुए देखे गये हैं ? क्या कभी पशु-वध से दूध निकलते देखा गया है ? जनोपयोगी प्राणियों का नाश कर जो जन अपनी भूख मिटाते हैं और भ्रांति फैलाते हैं वे कायर और ऋ र हैं, हिंसक हैं।" आज आवश्यकता है अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन जसे करुणापूर्ण हृदय वाले प्रशासकों की, जिनका हृदय एक वराह को पंक में से निकलने में असमर्थ देख द्रवित हो उठता है और कीचड़ में से उस असहाय पशु के प्राणों का रक्षण करते हैं। आवश्यकता है - सुभाषचन्द्र बोस जसे नेताओं की, जो कहते हैं माँ ! मैं तुन्हें बताना चाहता हूँ कि मैं शाकाहारी बनने का बहुत इच्छुक हूँ। अभी तक मैं अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सका। महीने भर से मैं मछली के सिवाय और कोई माँस नहीं खा रहा हूँ। मछली भी मैं बड़ो झिझक के साथ खाता हूँ। मैं मांस नहीं खाना चाहता क्योंकि हमारे ऋषि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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