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________________ ( १२७ ) पित्त के विकार (मृगी, उन्माद आदि) के रोग वालों को पथ्य ( सेवन करने योग्य) है | १ भगवती सूत्र सटीक शतक १५ पृष्ठ ३९२ में भी कपोत का अर्थ कूष्मांड फल से ही लिया गया है । आगे बढ़ने से पहले यहाँ हम कुछ ऐसे शब्दों की सूचि देना चाहेंगे जो प्राणधारी और वनस्पति के वाचक हैं प्रसिद्ध अर्थ बकरा राजवंश विशेष नाम अज इक्ष्वाक कपि कपोतक कपोतसार ७ काक कापोत कुक्कुटी कुक्कुर खर गोशीर्ष ताम्रचूड़ तुरंग द्विज नीलकण्ठ मण्डूक मातंग मार्जार मार्जारी बन्दर छोटा कबूतर कबूतर का सत्व कौआ Jain Education International कबूतर सम्बन्धि मुर्गी कुत्ता गदहा गाय का सिर मुर्गा घोड़ा ब्राह्मण शिव, मोर अप्रसिद्ध अर्थ सोनामाखी कड़वी तुम्बी शिलारस मेंढ़क हाथी बिल्ली बिल्ली १. सुश्रुत संहिता, सूत्र स्थान, शाक वर्ग श्लोक ३, पृष्ठ ४३८ अगस्त वृक्ष सफेद सुर्मा, सज्जी खार शाल्मली वृक्ष ग्रान्थिपर्ण सफेद सुर्मा सुर्मा For Private & Personal Use Only कण्टिक वृक्ष चन्दन विशेष ककरोंदा वृक्ष सेन्धा नमक सोनापाठा वृक्ष ढाक का पेड़ अगस्त्य वृक्ष, हिंगोटा वृक्ष कस्तूरी तुम्बरू वृक्ष मूलो www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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