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________________ ( १२३ ) करने गये तो हमें आहारादि में बड़ी परेशानी आई क्योंकि वहां तो चावल में भी झींगा मछली पकाई जाती है, हम तो फलों के साथ रोटी खाकर गुजारा करते थे। यह चर्चा श्री विजय धर्म सूरि समाधि मन्दिर शिवपुरी (म. प्र.) के व्यवस्थापक श्री काशीनाथजी सराक के समक्ष हुई। आचारांग सूत्र के अतिरिक्त भगवती सूत्र के एक उद्दरण को लेकर गोपालदास जीवाभाई पटेल ने भगवान महावीर पर मांस-भक्षण का दोषारोपण किया है और उनका समर्थन किया है- धर्मानन्द कौसम्बी ने । उस पर विचार करने से पहले यहाँ भगवती सूत्र का वह उद्दरण देना उपयुक्त होगा; जो इस प्रकार है "तुमं सीहा ! मेढिय गाम नगरं रेवतीए गाहावत्रिणीए गिहे, तत्थणं रेवतीया गाहावतिणीए ममं अट्ठाए दुवे कवोय सरीरा अवक्खडिया तेहिंनो अट्ठो, अस्थि से अन्ने परियासियाए मज्जारकडा कुक्कुडमसए तमांहराहि एएणं अहो।" श्री पटेल द्वारा इसका अर्थ यह है- “उस समय महावीर स्वामी ने सिंह नामक अपने शिष्य से कहा-तुम मेढिय गाँव में रेवती नामक स्त्री के पास जाओ उसने मेरे लिये दो कबूतर पकाकर रखे हैं, वे मुझे नहीं चाहिए। तुम उससे कहना कि कल बिल्ली द्वारा मारी गई मुर्गी का मांस तुमने बनाया है, उतना दे दो।" यह उस समय का प्रसंग है जब भगवान महावीर अपनी बीमारी की अन्तिम हालत में अपने शिष्य सिंह मुनि को मेढ़िया गाँव की निवासिनी रेवती नामक श्राविका के घर भेजकर जो औषधि मँगाते हैं । अब हम इस घटना का विस्तृत कर्णन करेंगे। भगवान किस रोग से पीड़ित थे ? जिस समय भगवान श्रावस्ती के साण कोष्ठक चैत्य में थे उसी समय उन्हें महान पीडाकारी, अत्यन्त दाह करने वाला पित्त ज्वर हुआ। जिसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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