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________________ ( ९४ ) बेइंदिया"+ आदि सूत्र का उच्चारण कर रहा था उसी समय किसी सैनिक ने इन शब्दों को सुन लिया। उस सैनिक ने दूसरे सरदार से जाकर कहाइस युद्ध के मैदान में जहाँ मार-मार की पुकार और शस्त्रों की खनखनाहट के सिवाय कुछ भी सुनाई नहीं देता वहां हमारे सेनापति एगिदिया, बेइ दिया कर रहे हैं । शनै -शनैः बात रानी के कानों तक जा पहुंची लेकिन अन्य कोई विकल्प न देखकर रानी चुप रही। दूसरे दिन प्रात: युद्ध प्रारम्भ होते ही सेनाध्यक्ष ने इतने पराक्रम और शौर्य के साथ शत्रु पर आक्रमण किया कि कुछ ही घड़ियों में शत्रु सेना का भयंकर संहार हो गया। मुसलमान सेनापति से हथियार रख युद्ध बन्द करने की प्रार्थना की। आभू को विजय पर अनहिलपुर की सारी प्रजा में उसका जय-जयकार होने लगा। रानी ने एक बड़ा दरबार करके आभू को उचित सम्मान प्रदान किया। इस अवसर पर रानी ने कहा-दण्डनायक ! जिस समय युद्ध में व्यूह रचना करते समय तुम एगिदिया, बेइंदिया का पाठ करने में लगे थे उस समय तो अपने सैनिकों को तुम्हारी ओर से बड़ी निराशा हो गई थी आज तुम्हारी वीरता को देखकर सभी को आश्चर्य हो रहा है । देखिये सेनाध्यक्ष क्या जवाब देते हैं "महारानी ! मेरा अहिंसा व्रत मेरी आत्मा के साथ सम्बन्ध रखता है। एगिदिया; बेइंदिया में वध न करने का जो व्रत मैंने ले रखा है वह मेरे व्यक्तिगत स्वार्थ की अपेक्षा से है । देश की रक्षा के लिये अथवा राज्य को भलाई के लिये यदि मुझे वध करना अथवा हिंसा करने की आवश्यकता पड़े तो वैसा करना मैं अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ। मेरा यह शरीर राष्ट्र की सम्पत्ति है । इस कारण राष्ट्र को आज्ञा और आवश्यकतानुसार इसका उपयोग होना आवश्यक है । शरीरस्थ आत्मा और मन मेरी निजी की सम्पत्ति है । इन दोनों को हिंसा-भाव से अलग रखना ही मेरे अहिंसाव्रत का लक्षण है।" + इस सूत्र का अर्थ है-मेरे द्वारा एक इंद्रिय, दो इंद्रिय"पंचेन्द्रिय तक यदि जीव हिंसा हुई हो तो उसके लिये क्षमा मांगना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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