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________________ इसमें वेदों के कर्मकांड की आलोचना की गई है। चारों वेद पशुओं के वध बंधनार्थ ही देखे जाते हैं । अश्वमेध आदि यज्ञों में यूपों का वर्णन आता है जो यज्ञमण्डप में गाड़े जाते हैं और उनके साथ बाध्य पशु बाँधे जाते हैं अतः ऐसा प्रतीत होता है कि वेद प्राय पशुओं के वध बंधनार्थ ही निर्मित हुए हैं । यज्ञ के लिये पशुओं की नियुक्ति का उल्लेख मनु आदि । स्मृतियों के "यज्ञार्थ पशवः सृष्टाः" इत्यादि वाक्यों में स्पष्ट रूप से पाया है। इसके अतिरिक्त भी "एवेत छागमाल भेत वायट्यां दिशि भूतिकामः" इत्यादि बैदिक वाक्यों से यज्ञ विषयक हिंसा का उल्लेख प्रत्यक्ष पाया जाता है। इन हिंसाजनक क्रियाओं के अनुष्ठान से कर्मों का तीव्र बंध होता है, जिससे आत्मा दुर्गति में जाती है । अत: प्रमाणित होता है कि वेदोक्त हिंसामय यज्ञों से किसी प्रकार के भी पुण्य फल को प्राप्ति नहीं हो सकती। - जयघोष मुनि के उद्बोधन मे विजय घोष ने वैद की हिंसात्मक यज्ञ छोड़कर भाई के पास दीक्षा ग्रहण की। __यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है कि १२वें अध्याय में (हरिकेशीबल) में वेदों को हिंसा के विधायक नहीं माना किन्तु यह कहा है कि तुम वेदों को पढ़ते हों लेकिन तुम्हें उनके अर्थों का ज्ञान नहीं जबकि २५वें अध्याय में उसके विरुद्ध यह लिखा है कि समस्त वेद पशुओं के बंधनार्थ हैं और उससे प्रतिपादित यज्ञ आदि पाप के हेतु है। अत: ऐसा प्रतीत होता है कि जयघोष मुनि के समय हिंसात्मक वैदिक यज्ञों की प्रथा चल पड़ी थी और उसका प्रचार अधिक हो चुका था इसलिये मुनि जयघोष ने उनका विरोध किया। जैन-धर्म में पंच अणुव्रत एवं पंच महाव्रत : गृहस्थों के लिए यह सम्भव नहीं कि ने समस्त पापों को त्यागकर सकें अत: उनके लिए पंच अणुव्रत-अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत एवं परिग्रहपरिमाण अणुव्रत का विधान है ये ही पंच महाव्रत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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