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विजयसेन सूरिजी को अकबर बादशाह का फरमान
[ नम्बर 4]
इस वक्त ऊ'चे दर्जे वाले निशान को बादशाही मेहरबानी से बाहर निकलने का सम्मान मिला (है) कि मौजूदा और भविष्य के हाकिमों, जागीरदारों, करोड़ियों और गुजरात सूबे के तथा सोरठ सरकार के मुसद्दियों में, सेवड़ा ( जैन साधु) लोगों के पास गाय और बैलों को तथा भैसों और पाडों को किसी भी समय मारने की तथा उनका चमड़ा उतारने की मनाई से सम्बन्ध रखने वाला श्रेष्ठ और सुख के चिन्हों वाला फरमान है और श्रेष्ठ फरमान के पीछे लिखा है कि "हर महीने में कुछ दिन इसके खाने की इच्छा नहीं करना तथा इसे उचित और फर्ज समझना और जिन प्राणियों में घर में या वृक्षों पर घौंसले बनाये हों उन्हें मारना या कैद करने (पिंजड़े में डालने) से दूर रहने की पूरी सावधानी रेखना ।" इस मनिने लायक फरमान में और भी लिखा है कि
"योगाभ्यास करने वालों में श्रेष्ठ हीरविजयसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि सेवड़ा और उसके धर्म को पालने वाले जिन्हें हमारे दरबार में हाजिर होने की सम्मान प्राप्त हुआ है और जो हमारे दरबार के खास हितेच्छु हैं- उनके योगा भ्यास की सत्यता और बुद्धि तथा परमेश्वर की शोध पर नजर रख (हुक्म हुआ कि ) इनके मन्दिरों में या उपाश्रयों में कोई न ठहरें एवं कोई उनका तिरस्कार भी ने करे । अगर ये जीर्ण होते हों और इनके मानने वालों, चाहने वालों में से कोई इन्हें सुधारें या इनकी नींव डाले तो कोई भी बाह्य ज्ञान वाला या धर्मान्ध उसे म रोके । और जैसे खुदा को नहीं पहचानने वाले, बारिस को रोकने या ऐसे ही दूसरे काम जो पूजा के ( ईश्वर के) काम हैं- करने का दोष, मूर्खता और बेवकूफी के सबब, उन्हें जादू के काम समझ, उन बेचारे खुदा के मानने वालों पर लगाते हैं। और उन्हें अनेक प्रकार के दुख देते हैं। ऐसे कामों का दोष इन बेचारों पर नहीं लगाकर इन्हें अपनी जगह और मुकाम पर खुशी के साथ भक्ती का काम करने देना चाहिए एवं अपने धर्म के अनुसार उन्हें धार्मिक क्रियायें करने देना चाहिए ।
इससे (उस) श्रेष्ठ फरमान के अनुसार अमेल कर ऐसी ताकीद करेंनी ाहिए कि, बहुत ही अच्छी तरह से इस फरमान का अमल हो और इसके विरुद्ध
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