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क्षेत्रों में ही विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के पास सुरक्षित सामग्री का विवेचन कर उसमें से इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण सामग्री को प्रकाश में लाने का प्रयास करें, ताकि भारतीय इतिहास की अनेक स्थलों पर टूटी हुई कड़ियां जोड़ी जा सकें एवं अधिक प्रामाणिक, ऋमिक व विस्तृत इतिहास जो भारत का इतिहास हो, हमारे सामने आ सके । इन शब्दों का सोद्देश्य प्रयोग मैंने इसलिए किया है कि वर्तमान में भारतीय इतिहास की जोपुस्तकें उपलब्ध हैं तथा अभी जैसी पुस्तकें लिखी जा रही हैं, उनमें मोहन जोदड़ों की सभ्यता का इतिहास, द्रविड सभ्यता का इतिहास, वैदिक सभ्यता का इतिहास, मौर्य साम्राज्य का इतिहास, मौर्य गुप्त साम्राज्य का इतिहास, राजपूत युग का इतिहास, मुगल सल्तनत का इतिहास, जैसे खण्डों के रूप में भारत के इतिहास को प्रस्तुत करना जैसे इतिहास लेखन की शैली में भी नहीं रहा है, क्या मोहन जोदड़ों की सभ्यता में आर्य सभ्यता की झलक नहीं मिली हुई थी ? क्या वैदिक युग में द्रविड़ तथा अन्य जातियां भारत में निवास नहीं कर रही थीं ? क्या मोयं युग में वृहत्तर भारत की कोई राजनैतिक छवि नहीं थी ? क्या गुप्त साम्राज्य में केवल वैष्णव धर्म ही भारत में सुरक्षित था ? क्या राजपूत युग में भारत को विभिन्न राज्यों के समूह के रूप में ही देखा जा सकता है ? और क्या मुगल सल्तनत का भारत आर्यों का मारत नहीं
? आदि प्रश्न हमें भारत के एतिहासिक चित्रफलक के दूसरी ओर झांकने के लिए प्रेरित करते हैं जिस ओर का भारत एक समुद्र जैसा दिखाई देता है, जिसमें अनेक जातियां, समुदायों, राजवंशों, सम्प्रदायोंकी लहरें हैं, प्राणी हैं, नदियों का जल है और न जाने क्या-क्या है किन्तु वह सब समुद्र हैं । पूरे जल का एक जैसा स्वाद है, उसकी तरंगों की एक सी ध्वनि है । वह सदा अपनी मर्यादा में रहा है । वह हिन्द महासागर है, अरब सागर या बंगाल की खाड़ी नहीं ।
आगे के पृष्ठों में मेरा यह विनम्र प्रयास भारत के लिखित, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास के संशोधन एवं परिवर्धन की दिशा में प्राचीन किन्तु अप्रयुक्त सामग्री आधार पर एक अभिनव प्रयास है इसकी सामग्री प्रमुखतः जैन साहित्य में से ली गई है जिसके आधार पर प्रतिष्ठित इतिहास ग्रन्थों के विवरणों का खण्डन मण्डन हुआ है । प्रयुक्त सामग्री की नवीनता के उदाहरणों का उल्लेख महां अभीष्ट होगा। जहांगीर के काल का चित्रकार शालिवाहन द्वारा लिखित मुनिविजय हर्ष का आचार्य विजयसेनसूरि के नाम एक विज्ञप्ति-पत्र में जहांगीर के दरबार के विशिष्ट व्यक्तियों का भी उल्लेख है तथा फरमान प्राप्त करने की घटना भी frieत हैं । लगभग इसी काल में जटमल नाहर ने लाहौर की गजल लिखी, जिसमें लाहौर नगर के शब्द चित्र के साथ ही वहां जहांगीर के सेना
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