SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका भारतीय इतिहास लेखन का कार्य अधिकृत एवं समसामयिक सामग्री की अनुपलब्धि के कारण अत्यधिक दुरुह माना जाता रहा है । शिलालेख, दानपत्र, सिक्के तथा विदेशी यात्रियों के विवरण प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत हे हैं तथा इनके साथ ही समसामयिक इतिहासकारों के विवरण एवं मुगल हासकों के आत्मचरित् मध्य युगीन इतिहास के प्रमाणिक स्रोत माने गये हैं। हमने इसे सैद्धान्तिक रूप से स्वीकार लिया है कि भारत में इतिहास लेखन की प्रवृत्ति ही नहीं थी, किन्तु तथ्य यह है कि भारत में राजनैतिक घटनाओं का महत्व सामाजिक प्रभाव की दृष्टि से सदैव आंका गया है तथा साहित्यिक कृतियों एवं धार्मिक अभिलेखों में भी ऐसी घटनाओं का उल्लेख मिलता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ऐतिहासिक इतिवृत्तों पर आधारित सर्वाधिक काध्य कृतियां जैनाचार्यों एवं जैन कबियों द्वारा लिखी गई है । धार्मिक अभिलेखों में जैन विज्ञप्ति पत्र एतिहासिक तथ्यों के प्रामाणिक आधार हैं। वीतराग आचार्यों के काव्य भाषा एवं शैली में कितने ही अलंकृत हों, किन्तु सत्य की महावतों में प्रथम गणना होने के कारण असत्य तथ्यों के वर्णन की उनमें सम्भावना ही नहीं की जा सकती। विज्ञप्ति पत्र इस कारण और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि उनमें लेखन अपने स्वयं के असत् कर्मों का उल्लेख करने में भी नहीं संकोच करता तो फिर किसी अन्य के विषय में ज्ञात तथ्यों को छुपाने में उसकी क्या रूचि हो सकती है। डाक्टर हीरानन्द शास्त्री ने जैन विज्ञप्ति पत्रों के नेकविध महत्व को निम्नांकित शब्दों में उचित ही व्यक्त किया है कि-"विज्ञप्ति पत्रों में छोटी-छोटी कहानियों और पुरानी घटनाओं से हमें देश के शासकों के बारे में जो कुछ लिखा हैं, उसका पूरा वर्णन मिलता है, जो कि इतिहास के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह हमें कला क्राफ्ट और व्यवसाय के बारे में विस्तार से बताते हैं । सामाजिक धार्मिक रीति-रिवाजों के ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ मनुष्य संबंधी ज्ञान भी करवाते हैं"1 1. एंशिएंट विज्ञप्ति पत्र पृष्ठ 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy