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प्रकाशक का निवेदन
परमोपकारी पूज्यपाद पंयास प्रवर श्री भद्रकरविजयजी गरिगवर्य श्री ने आज से चालीस वर्ष पूर्व 'प्रतिमा पूजन' नामक इस पुस्तक का लेखन-संपादन-संकलन किया था। ...
प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने शास्त्रीय आधार पर बहुत ही मार्मिक दृष्टि से यह स्पष्ट किया है कि प्रतिमा पूजन कितनी सर्वोच्च कल्याणकारी प्रवृत्ति है। इस पुस्तक को काई भी पाठक समदृष्टि से ध्यान पूर्वक पढ़ने के बाद इसी निर्णय पर पहुँचेगा कि प्रतिमा पूजन स्व-पर-श्रेय के लिये अजोड़ और अनुपम सफल धर्म क्रिया है।
जिन-प्रतिमा पूजन के महत्त्व को समझने तथा इस सम्बंधी भ्रांतियों को दूर करने में यह पुस्तक अजोड़ सामग्री से परिपूर्ण है। अतः आत्मकल्याण के इच्छुक महानुभावों से इस सम्पूर्णः पुस्तक को एकाग्रता से पढ़ने का अनुरोध हैं।
श्री जिनदत्तसूरि मंडल, अजमेर के मंत्री भाई श्री चांदमलजी सीपाणी ने इस पुस्तक की छपाई सम्बंधी तथा प्रफ संशोधन में जो उत्साह बताया है उसके लिए विशेष रूप से धन्यवाद के पात्र हैं।
पू. पंयासजी म. सा. का साहित्य वर्तमान काल में पाराधकः वर्ग को महान् प्रेरणादायक है । पूज्य श्री के साहित्य का अमृता
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