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________________ ४८ रोना-पीटना करते हैं तथा यात्रा के लिये मक्का मदीना जाकर वहाँ एक काले पत्थर को चुम्बन करते हैं तथा ऐसा मानते हैं कि इससे पाप नष्ट होते हैं । __ मूर्ति पूजा नहीं मानने वाले ईसाई सूली पर लटकती ईसामसीह की मूर्ति और क्रॉस स्थापित कर अपने चर्च में उसे पूज्यभाव से देखते हैं, द्रव्य भाव से पूजा करते हैं तथा पुष्पहार चढ़ाते हैं। कबीर, नानक, रामचरण आदि मूर्ति विरोधियों के अनुयायी अपने अपने पूज्य पुरुषों की समाधियाँ बनाकर पूजते हैं । समाधियों के दर्शनार्थ भक्त लोग दूर दूर से आते हैं तथा पुष्पादि पदार्थ चढ़ा कर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। स्थानकवासी वर्ग अपने पूज्यों की समाधि, पादुका, मूर्ति, चित्र आदि बनाकर उपासना करते हैं, दर्शन हेतु दूर दूर से आते हैं तथा दर्शन कर अपने को कृतकृत्य मानते हैं। कोई भी पंथ, मत, संप्रदाय, जाति, धर्म तथा व्यक्ति मूर्तिपूजा से वंचित नहीं है। मूर्ति पूजकों ने संसार पर जितना उपकार किया है, विरोधियों ने उतना ही अपकार किया है। मूर्ति आत्मकल्याणकारक होकर संसार के सभी जीवों की सच्ची उन्नति का साधन है । इसका विरोध आत्म-अहित का तथा विश्व भर के अधःपतन का प्रमुख कारण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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