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२६ आदि का है। अतः ऐसी दशा में इसे हिंसा का कार्य नहीं कहा जा सकता। इसी भाँति जिन पूजा में भी उद्देश्य जिन-भक्ति का है अतः इसे हिंसक कार्य कैसे कहा जाय ? केवल जीववध को ही यदि हिंसा का नाम दे दिया जाय तो नदी पार करने वाले तथा गाँव गाँव विहार करने वाले साधु को भी हिंसक ही कहा जायेगा। साथ ही लोभ आदि कष्टों को सहने वाले तथा उग्र तपस्या द्वारा शरीर को सुखाने वाले एवं महाव्रतों के संरक्षण हेतु अवसर आने पर अपने प्राणों की बलि देने वाले
भी हिंसा का कार्य करने वाले हैं, ऐसा कहना पड़ेगा। ___इसके जवाब में यदि ऐसा कहा जाय कि इन सब कार्यों के लिये भगवान् की अनुमति है तो इसके साथ ही प्रश्न करना पड़ेगा कि 'क्या हिंसा के कार्यों के लिये भगवान् कभी आज्ञा देते हैं ? क्या ऐसा हो सकता है कि भगवान् को हिंसा करने की तो नहीं पर करवाने की छूट है ? पर नहीं, भगवान् भी त्रिकरण योग से हिंसा के परिहारी होते हैं। यदि इन कार्यों में हिंसा ही होती तो भगवान् कभी भी ऐसी आज्ञा नहीं देते : परन्तु नदी पार करना आदि कार्य संयम रक्षा के लिये हैं, पुद्गल के हेतुसर नहीं इसलिये उन प्रवृत्तियों को हिंसक नहीं पर अहिंसक माना गया है । साधु द्रव्य पूजा क्यों नहीं करते ? - यहाँ ऐसा तर्क होना भी स्वाभाविक है
"श्री जिन पूजा भक्तिस्वरूप होने से उसमें होने वाली विराधना यदि हिंसा नहीं है तो पंचमहाव्रतधारी साधु पूजा क्यों नहीं करते ?"
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