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________________ २७० होती है उस उस वस्तु के स्वरूप का अनुभव-ज्ञान मन से उनउन अगम्य वस्तुओं को एकाग्र करने से होता है । गुरुत्वाकर्षण का अगम्य नियम 'न्यूटन' ने किस प्रकार टूढ निकाला? 'एडीसन' ने बिजली के विविध कार्य और उनका उपयोग किस प्रकार खोज निकाला? जिस जिस का ज्ञान प्राप्त करने का होता है, उस उस में मन को तथा विचार को एकाग्र करने से ! रहस्यज्ञान का प्रकाश करने वाली एकाग्रता एक दिन में नहीं होती। मन को चंचलता अभ्यास के बिना नहीं मिटती। अतः परमेश्वर का अगम्य ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक को सर्व प्रथम परमेश्वर में एकाग्र बनने की आवश्यकता है और तत्पश्चात् उसका कदम कदम पर अभ्यास करने को दूसरी आवश्यकता है। एकाग्रता का प्रथम चरण मूर्ति पूजन है। मूर्ति को नहीं मानने वाले भले ऐसा कहें कि, 'हम मन को निराकार ईश्वर में एकाग्र करने में समर्थ हैं और हमारा कार्य मानसिक पूजन करने का है' परन्तु उनके नेत्र, वचन और व्यवहार स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वे सभी केवल आडम्बर-- पूर्वक की गई बातें हैं। एक अंक पढ़े बिना, गणित की बड़ी बड़ी बातें करने में कोई समर्थ नहीं होता, वैसे ही एकाग्रता प्राप्त करने में क्रमवार सीढ़ियाँ पार किये बिना कोई भी एकाग्रता को प्राप्त नहीं कर सकता। प्रत्येक व्यक्ति एकाग्रता को नहीं साध सकता। एकाग्रता की साधना करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह विद्या विषयक हो, कला विषयक हो, व्यापार विषयक हो अथवा अध्यात्म विषयक हो, प्रारंभ में मूर्ति का सहारा लेना ही पड़ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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