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श्री शाश्वत - जिन स्तुति
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ऋषभ चंद्रानन वंदन कीजे, वारिषेण दुख वारे जी, वर्द्धमान जिनवर वली प्ररणमो, शाश्वत नाम ए चारे जी । भरतादिक क्षेत्रे मली होवे, चार नाम चित्त धारे जी, तेणे चारे ए शाश्वत जिनवर, नमीये नित्य सवारे जी ।।१७७ उर्ध्व अधो तिर्छा लोके थई, कोडि पन्नरसें जाणो जी, ऊपर कोडी बेहंतालीस प्ररणमो, अडवन लख मन प्राणो जी । छत्रीश सहस एंशी ते ऊपरे, बिम्ब तणो परिमाणो जी, असंख्यात व्यंतर ज्योतिषीमां, प्रणमुं ते सुविहारणो जी ॥२॥
रायपसेरिग जीवाभिगमे, भगवती सूत्रे भाखी जी, जंबूद्वीप पन्नत्ति ठारणांगे, विवरीने घणु दाखी जी वली अशाश्वती ज्ञाताकल्पमां, व्यवहार प्रमुखे प्राखी जी, ते जिन प्रतिमा लोपे पापी, जिहां बहु सूत्र छे साखी जी || ३१७
ए जिन पूजाथी आराधक, ईशान इन्द्र कहाया जी, तेम सूरियाभ बहु सुरवर, देवी तरणा ससुदाया जी । नंदीश्वर श्रट्ठाई महोत्सव, करे प्रति हर्ष भराया जी, जिन उत्तम कल्याणक दिवसे, पद्मविजय नमे पाया जी ॥४॥
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