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प्रतिमा-पूजन
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श्लोकादि संग्रह • पू० न्यायाचार्य, न्यायविशारद महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराज विरचित "श्री प्रतिमाशतक' के प्रति मननीय ११ पद्य
ऐन्द्रश्रेणिनता प्रतापभवनं भव्यांगिनेत्रामृतं, सिद्धान्तोपनिषद्विचारतुरैः प्रीत्या प्रमाणीकृता। मूर्तिः स्फूतिमती सदा विजयते जैनेश्वरीन विस्फुर मोहोन्मादघनप्रमादमदिरामत्तैरनालोकिता। ___इंद्रों की श्रेणी द्वारा नमस्कृत, प्रताप के गृहरूप, भव्य प्राणियों के नेत्रों को अमृतरुप, सिद्धान्त के रहस्य का विचार करने में चतुर पुरुषों द्वारा प्रीति से प्रमाणभूत की हुई और स्फुरायमान ऐसी श्री जिनेश्वर भगवंत को प्रतिमा सदा विजय प्राप्त करती है, कि जो प्रतिमा विविध परिणाम वाले मोह के उन्माद और प्रमादरुपी मदिरा से उन्मत्त बने कुमति-पुरुषों को देखने में नहीं आती (१)
नामावित्रयमेव भावभगवत्तादप्यधीकारणं, शास्त्राव स्वानुभवाच्च शुद्धहहयरिष्टं च दृष्टं मुहुः । तेनाहतप्रतिमामनाहतवता भावं पुरस्कुर्वता मन्धानामिव दर्पणे निजमुखालोकाथिनां का मतिः ।।
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