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२३८ उपायों को समझाने वाला ज्ञान भी उतना हो महान् है । जो ज्ञान मोक्ष एवं मोक्ष मार्ग से विमुख करे, भववृद्धि के मार्ग पर ले जाये, तप, संयम तथा जिनपूजादि सद् अनुष्ठानों से आत्मा को वंचित रक्खें, उस ज्ञान को शास्त्रकारों ने मिथ्याज्ञान की उपमा देकर, घृणा योग्य बताया है। ___ संसार जितना घृणित है, उतना ही संसारवृद्धि के मार्ग पर ले जाने वाला ज्ञान भी घृणित है। ऐसे मिथ्याज्ञान को प्राप्त करने की अपेक्षा अज्ञानी अथवा अल्पज्ञानी रहना हजार गुना अच्छा है । सम्यग्ज्ञानी की छत्रछाया में रहने वाले अज्ञानी या अल्पज्ञानी का मोक्ष होता है, परन्तु मिथ्याज्ञानी की सिद्धि शास्त्रकारों ने कहीं नहीं बताई है ।
सम्यग्ज्ञान जीव को जिन पूजादि शुभ कार्यों में लगाता है। इसलिये उस ज्ञान की वृद्धि हेतु तनतोड़ प्रयास करना सम्यग्दृष्टि आत्माओं का परम कर्तव्य है। इस पुस्तक में थोड़ा भी सम्यग ज्ञान ही देने का यथाशक्ति प्रयास किया गया है। इसका भवभीरु आत्मा यथाशक्ति लाभ लेकर अपना व दूसरों का श्रेयः साधे तथा श्री जिनभक्ति में तल्लीन बनें, यही अभ्यर्थना है।
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