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________________ १५५ इस प्रकार प्रत्येक पंथ के अनुयायी अपनी अपनी पूजनीय वस्तुओं के आकार की किसी न किसी ढंग से पूजा करते ही हैं। इससे मूर्ति पूजा बालक से लगाकर पंडित तक सभी को मान्य है। प्रश्न ४१-गुरु साक्षात् रूप में उपदेश देते हैं वैसे मूर्ति कभी उपदेश नहीं देती अथवा देने वाली नहीं तो फिर साक्षात् गुरु को छोड़कर जड़ मूर्ति की उपासना करने से क्या लाभ ? उत्तर-सब से पहले यह समझना चाहिये कि गुरु भी उपदेश किसको दे सकते हैं। जो शून्य हृदय वाले हैं, उन्हें गुरु भी उपदेश कैसे दे सकते हैं ? गुरु का उपदेश समझने के लिये जैसे पहले शास्त्राभ्यास करना पड़ता है तथा समझने की शक्ति प्राप्त करनी पड़ती है और बाद में ही वह समझा जाता है वैसे ही मूर्ति पूजा के लिये भी जिसकी मूर्ति की पूजा करनी हो उसके गुणों का स्वरूप समझकर फिर उसकी पूजा की जाय तो लाभ क्योंकर नहीं होगा ? अवश्य होगा। फिर-'गुरु उपदेश देते हैं व मूर्ति उपदेश नहीं देती'---इस कारण ही यदि गुरु पूजनीय हों और मूर्ति पूजनीय न हो तो स्वर्गवासी सभी गुरु अपूजनीय ही बनेंगे, क्योंकि वे उपदेश तो देते नहीं हैं । तो फिर उनको भी हाथ जोड़ना या नमस्कारादि करना छोड़ देना पड़ेगा। आगे चलकर कहा जाय कि गुरु उपदेश क्यों देते हैं ? क्या उपदेश द्वारा स्व-पर-हित साधकर मोक्ष प्राप्ति के लिये ? यदि उपदेश देने में गुरुओं का यही ध्येय हो तो मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् अशरीरी अवस्था में वे किस प्रकार उपदेश दे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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