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दिखावे की भक्ति
विद्वानों ने कहा है जो व्यक्ति लोगों को प्रभावित करने के लिए अपने धार्मिक क्रियाकांडों का प्रदर्शन करता हैं, लोक रंजन के लिए तपस्या करता है, वह वैसा ही मूर्ख है-जैसा कोई लोगों को अपनी समृद्धि जताने के लिए ऐरावत हाथी पर लकड़ियों का भार ढोता है, कूड़ा-कचरा भरता है।
आचार्य भद्रबाह के शब्दों में लोक प्रदर्शन करने वाले की तपस्या-ईख के फूल जैसी निरर्थक हैमन्नामि उच्छफुल्लं व निफ्फलं तस्स सामन्तं
-दशवै० नि० ३०१ एक बार किसी महात्मा जी के चेले की प्रशंसा सूनकर राजा ने उन्हें अपने महलों में भोजन के लिए निमंत्रित किया।
राजपुरुषों ने चेला जी के सामने तरह-तरह के स्वा
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