________________
१७ अब तेरी परीक्षा
मनुष्य हिंसा एवं अन्याय क्यों करता है ?
इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए भगवान महावीर ने कहा हैजे पमत्त गुणट्ठिए से हु दंडे त्ति पवुच्चति
-आचारांग १११।४ जो प्रमत्त और विषयासक्त होता है, वहीं दूसरों को --हिंसा, पीड़ा एवं अन्याय के द्वारा दंडित करता है।
अपने प्राणों का, अपने पुत्र-परिवार एवं सुख-सुविधाओं का जो मूल्य मनुष्य की दृष्टि में है, यदि वह दूसरों के प्राण आदि का भी वही मूल्य समझले तो फिर संसार से हिंसा एवं अन्याय नामक तत्व ही समाप्त न हो जाय ?
एक फारसी विद्वान का कथन है कि तुम्हारे पैर के नीचे दबी चींटी का हाल समझना हो तो कल्पना करो कि एक हाथी के पैर के नीचे दबने पर तुम्हारा क्या हाल हो
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org