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प्रतिध्वनि
महाराज ! धन्य है आपका उपदेश ! कड़ाके की सर्दी पड़ रही है और मेरे पास तन ढकने को एक वस्त्र का चिथड़ा भी नहीं है। आपके शरीर पर इतने गर्म कपड़े हैं, दो-दो कम्बल है, एक मुझे मिल आये तो महाराज ! जान बच जाए।'
हैं ! हैं हटो ! हमने उपदेश दिया तो हमारे ही गले पड़ गये ! हमने सेवा और दान की प्रेरणा दे दी अब किसी दानी से माँगो हटो !' .
बुड्ढे ने सर्दी से काँपते हुए धूर कर देखा-समझा ! तुम सेवा करने वाले नहीं, सेवा का उपदेश करने वाले हो, सेवा करना तुम्हारा काम नहीं है।'
एक नेता ने श्रमदान यज्ञ का उद्घाटन कियाजनता को हाथ से श्रम करने की महत्ता और गौरव समझाते हुए कहा-'हमें हाथ से काम करने में गौरव का अनुभव होना चाहिए, जो श्रम से जी चुराता है, वह चोर है, देशद्रोही है..!'
भाषण समाप्त कर नेताजी आगे निकल गये। कुछ मजदूर वहाँ से मिट्टी खोदकर सर पर उठा-उठाकर ले जा रहे थे । आखिर में एक मजदूर बचा, भरी हुई टोकरी उससे उठ नहीं रही थी, कोई उठवाने वाला नहीं था, तभी नेताजी उधर से निकले ।
मजदूर अभी श्रमदान में उनका जोशीला भाषण
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