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प्रतिध्वनि
२८
पौराणिक कथा याद आजाती है ।
एक बार दो सहेलियां नदी के शांत तट पर घूम रहीं थी । सहसा उन्हें दो और सहेलियां मिलीं जो फटे हुए कपड़े पहने विपद्ग्रस्त सी कहीं से आ रहीं थी । सहेलियों ने उन्हें भद्र महिला समझकर अभिवादन किया | अभिवादन के बाद परिचय हुआ। उन दोनों ने अपना-अपना नाम बताया - "मेरा नाम है- राजकुमारी धूर्तता !" और मेरा नाम है - " कुमारी क्रूरता ।" और आपका नाम क्या है बहन जी ! — दोनों ने पूछा ।
मेरा छोटा सा नाम है- "दया !" और मेरा भी एक सीधा सादा नाम है- सरलता ।" - उत्तर दिया दोनों सहेलियों ने ।
बातों ही बातों में चारों में स्नेह और मंत्री बढ़ गई । धूर्तता ने कहा - "आओ ! देखो, नदी का शांत जल मोती-सा निर्मल और बर्फ-सा शीतल है। इसकी लहरों में अपूर्व उत्साह भरा है, हम चारों नदी में नहाएं ।"
चारों सहेलियों ने अपने-अपने कपड़े किनारे पर उतार दिये और नदी में डुबकियां लगाने लगीं ।
धूर्तता ने आँखें मटकाकर क्रूरता को इशारा किया और झटपट दोनों नदी से बाहर निकलीं । क्रूरता ने दया के सुन्दर रेशमी कपड़े पहन लिए और धूर्तता ने सरलता का स्वच्छ सादा परिधान अपने शरीर पर डाला और वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गई ।
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