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सुख स्वप्न
इस सृष्टि का सबसे सुन्दर सुनहरा दिन वह होगा जब मनुष्य का मन नई करवट लेगा, पर-दुःखानुभूति के स्पर्श से उसका हृदय उसी प्रकार उद्वेलित होगा, जैसा स्वयं के दुःख स्पर्श में होता है। वह अपने सूख-स्वप्नों का मूल्यांकन करना सीखेगा -दूसरों के दुःख-आघातों के
साथ !
भगवान महावीर ने कहा है-"आय तुले पयासु"पर पीड़ा को अपनी पीड़ा से तोलो। अपने दुःख की तराज में दूसरों का दुख रख कर तोलो, तभी तुम सुखदुःख की सच्ची पहचान कर सकोगे।"
पर, होता है इससे उलटा ! इन्सान का मन भीतर में मोम है, बाहर में पत्थर ! उसे अपनी लगी-लगी सुझती है, दूसरों की लगी दिल्लगी ! उसे परवाह नहीं कि उसके व्यवहार और विचार से किसको कैसी चोट पहुँचेगी ? दूसरा कोई उसकी चोट से कराहता है तो वह उसे
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