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भारतीय नारी का आदर्श
पार्वती ने सकुचाते हुए कहा-“देव ! मेरा मनोरथ सफल हुआ ! मैं आपको अपना मन तो पहले ही दे चुकी है किन्तु यह शरीर तो जन्म देने वाले का है, इसे उन्हीं (पिता) से दान स्वरूप प्राप्त कर उनका सम्मान बढ़ाइए
मनस स्त्वं प्रभुः शम्भो ! दत्तं तच्च मया तव ! वपुषः पितरावेतौ सम्मानयितुमर्हसि ।
___ -स्कन्द पुराण यह है एक उज्ज्वल आदर्श, जो मन के हाथ से निकल जाने पर भी कभी अनुचित आचरण करने की भूल नहीं करने देता !
तपोवन में शकुन्तला-दुष्यंत का प्रथम मिलन हुआ। दुष्यन्त प्रेमोन्मत्त होकर ऋषि कन्या को ग्रहण करना चाहते थे, वे उसे पाने उतावले हो उठे । शकुन्तला उठकर जाने लगी, तो प्रेम-विह वल दुष्यंत ने रोकना चाहा। शकुन्तला ने नीची आँखें किए विनम्रता पूर्वक कहा
पौरव ! रक्ख अविणग्रं। गअण संततावि ण सु अत्तणो पहवामि ।
-अभिज्ञान शाकुन्तलम् 'हे पुरुवंशी ! शिष्टाचार की मर्यादा न तोडो ! यद्यपि मैं तुम्हें प्यार करती है, परन्तु मैं स्वतंत्र नहीं हैं, पिता कण्व की अनुमति पर ही हमारा मिलन हो सकता है।"
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