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सिद्धि या ईश्वर
उपनिषद् में एक स्थान पर बताया है-विद्वान, धीर, विचक्षण वह है जो प्रेय (भौतिकसिद्धि) का त्याग कर श्रेय (आत्म-लाभ) का वरण करता है ।
श्रेयो हि धीरोऽभिप्रेयसो वणीते प्रयो मन्दो योगक्ष माद् वृणीते ,
-कठ उपनिषद् २।२ एक प्राचीन लोक श्रुति है कि भक्त हनुमान की सेवाओं पर प्रसन्न होकर जगज्जननी सीता ने हनुमान को अपना बहुमूल्य रत्नहार पुरस्कार में दिया । भक्त श्रेष्ट्र हनुमान ने उस में की एक मरिण तोड़ी और सूर्य के सामने कर के उसे परखने लगे जैसे जौहरी रत्न की परीक्षा कर रहा हो।
मुस्कराकर सीता ने पूछा-"हनुमान ! यों क्या देख
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