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राजा का आदर्श
शरीर के रक्षण, भरण पोषण में जो स्थान 'मुख' का है, वही स्थान राष्ट्र के संरक्षण, संस्कार, न्याय एवं पोषण की दृष्टि से राजा का है, अतः उसे भी 'राष्ट्र का मुख' या 'प्रमुख' कहा जाता है । इसीलिए कहावत भी है-'मुखिया मुख सम चाहिए।'
राजा न केवल प्रजा की रक्षा करता है, किंतु अपने उच्चे आदर्शों के द्वारा उसके जीवन में सुन्दर और महान् संस्कारों का अंकुरण भी करता है। __ ऋगवेद के एक मंत्र में कहा गया हैविशस्त्वा सर्वा वांच्छन्तु मा त्वद् राष्ट्रमधिभ्रशत्
-ऋग्वेद १०११७१ -राजन् ! सब प्रजा तुम्हें हृदय से चाहती रहे, तुम्हारे आदर्शों पर अनुगमन करती रहे । तुम से कभी राष्ट्र का, प्रजा का कोई अमंगल न हो, इसका ध्यान रहे।
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