________________
मोता की प्रतिकृति
१६६ मुंह फेर लिया। रानी को बालक के मुँह फेर लेने पर बड़ा हो खेद और ग्लानि हुई कि-हे भगवान् ! बालक ने मेरी लाज देखली ! और आत्म-ग्लानि के इस भयंकर विष ने सचमुच ही उसकी जान ले ली।" __राजपंडित की बात सुनकर राजा के मन से अपने पुत्र को सिद्धराज जैसा वीर धीर बनाने की कल्पनाएं हवा होगई।
गौरव पूर्ण मातृत्व का यह एक उज्ज्वल पक्ष है। और नारी के हीन व भयसंत्रस्त मातृत्व का दूसरा रूप भी देखिए
मुहम्मदशाह को बंदी बनाकर नादिरशाह ने जब लाल किले पर अधिकार किया तो उसने एक कड़ी आज्ञा दी-“मृत बादशाह की समस्त बेगमें मेरे सामने आकर नाच दिखाएं।''
नादिरशाह के हुक्म से बेगमों के होश-हवास उड़गये । जिन बेगमों ने कभी राजमहल की देहरी पार नहीं की, जिन का नाजूक मुखड़ा कभी सूरज और चाँद ने भी नहीं देखा, वे दरवार में आकर वेश्याओं की तरह पर-पुरुषों के सामने नाचे ? पर करे क्या ? नादिरशाह का हुक्म कौन टाल सकता ? बेगमें दीवाने-आम में आकर नाचने को तैयार होगई । नादिरशाह मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) पर लेटा था, सिरहाने नंगी तलवार चमचमा रही थी।
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org