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________________ रावण की सीख पर टालता रहा। क्रोधावेश में अपने छोटे भाई को भी खदेड़ दिया। सीता-हरण जैसा दुष्कृत्य गुणीजनों की सम्मति लिए विना सहसा कर डाला। कहते-कहते रावण ने एक सिहरन के साथ आँखें फेर ली ।* रावण की इन शिक्षाओं के प्रकाश में देखिए महापुरुषों के ये शिक्षावचन-- भगवान महावीर ने गौतम से बार-बार कहा समयं गौयम ! मा पमायए -उत्त० १०।१ गौतम ! समय मात्र भी प्रमाद मत कर । जे छेय से विप्पमायं न कज्जा -आचा० १।१४।१ चतुर वही है, जो कभी शुभकृत्य में प्रमाद न करें और देखिए तथागत का यह वचनजाति मित्ता सुहज्जा च परिवज्जति क्रोधनं -अंगुत्तर निकाय ७।६।११ क्रोधी को, ज्ञातिजन, मित्र, और सुहृद् सभी छोड़ देते हैं । और महाकवि भारवि की यह सूक्ति सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदापदम् जल्दबाजी में कोई भी कार्य मत करो, अविवेकपूर्ण । क्रिया से अनेक आपत्तियाँ खड़ी हो सकती हैं। * वैदिक ग्रन्थों के आधार से । Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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