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प्रतिध्वनि
महापुरुषों की यह वाणी जीवन और जगत का शाश्वत नियम रही है । देश-काल की सीमाओं से परे प्रत्येक उदात्त जीवन में प्रतिबिम्बित होती रही है।
राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के जीवन का प्रसंग है । वे अपने मित्रों के प्रति जितने विनम्र एवं मधुर थे, शत्रु ओं के प्रति भी उतने ही उदार एवं सहृदय थे । अनेकबार अपने शत्र ओं को वे मित्र की तरह घर पर बुलाते, उनके साथ बातचीत करते और बड़ा हो स्नेह प्रदर्शित करते ।
लिंकन की यह नीति और व्यवहार उनके मित्रों को पसन्द नहीं आई । एकबार एक मित्र ने झंझला कर लिकन से कहा-"आप अपने शत्र ओं के साथ मित्र की तरह व्यवहार क्यों करते हैं, इन्हें तो खत्म कर डालना चाहिए।"
मधुर मुस्कान के साथ लिंकन ने उत्तर दिया-'मैं तो तुम्हारी बात पर ही चल रहा हूँ, शत्रुओं को खत्म करने में ही लगा हूँ।' हां, तुम उन्हें जान से मार डालने की बात सोचते हो, और मैं उन्हें मित्र बनाकर !
शत्रु ता को मित्रता में बदलने का, कटुता को मधुरता में बदलने का कितना सुन्दर तरीका था यह !
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