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सोने का झोल पवित्र दिन में माँसाहार करने की मना की थी न ?” । ___ यहूदी ने कहा- "मुझे याद है ! किंतु इसे तो मैंने तीन बार पानी के छींटे डालकर बेजिटेबल बना लिया है।"
पादरी बड़ी हैरत से उसे देखने लगा-"ऐसा नहीं हो सकता, कितना भी पानी छींटो, माँस तो माँस ही रहेगा।'
यहूदी ने तीखी मुस्कराहट के साथ पादरी की आँखों में आँखें डाली-“फिर पानी के छींटे देने से यहूदी ईसाई कैसे हो सकता है ?"
पादरी के पास इस बात का कोई जबाब नहीं था।
वास्तव में धर्म ऊपर से नहीं थोपा जाता, वह तो हृदय से जन्म लेना चाहिए। एक जैनाचार्य के शब्दों मेंवण्णेण जुत्तिसुवण्णगं व असइ गुणनिहमि
दशवै. नियुक्ति ३५६ सोने का झोल चढ़ा देने से पीतल कभी सोना नहीं हो सकता। वैसे ही केवल धार्मिक मत या पंथ बदल लेने से व्यक्ति धार्मिक नहीं होता । धार्मिकता हृदय से जगनी चाहिए।
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