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प्रतिध्वनि
तरुणी ने हाथ में जल का बर्तन लिया, पर सकुचाते हुए उसने नम्र दृष्टि से भिक्षु की ओर देखकर कहा"पर, भिक्षु ! मैं चंडाल कन्या हूँ ।" उसके हाथ कांप रहे थे ।
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आनन्द ने सांत्वना के स्वर में कहा - " सुभगे ! मैंने पानी मांगा था, जाति नहीं पूछी !" और तरुणी ने श्रद्धा के साथ भिक्षु को जल पिलाया ।
चंडाल कन्या आनन्द के समभाव से प्रभावित होकर तथागत के पास आई, उसने ज्ञान प्राप्त किया, और प्रव्रजित हो गई ।
चंडाल कन्या की प्रव्रज्या देखकर श्रावस्ती के उच्चवर्गीय लोगों में खलबली मच गयी । राजा प्रसेनजित भी कुछ भ्रांत और उत्तजित हुए तथागत के पास आये । तथागत बुद्ध ने उनके हृदय का अंधकार दूर करते हुए कहा"कोई भी बड़ा मनुष्य आकाश से नहीं उतरता, और कोई भी छोटा मनुष्य पाताल से नहीं निकलता । स्वयं के आचार-विचार से ही सब छोटे बड़े बनते हैं ।" कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं । बुद्ध के उपदेश से सब की भ्रांति दूर हट गई ।
( मज्झिमनिकाय ३।४३।३)
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