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प्रतिध्वनि
बालक का यह अनुभव अध्यात्मज्ञानियों का सच्चा जीवन दर्शन है, जिसने अपने आपको पकड़ लिया, स्वयं पर नियन्त्रण कर लिया, छाया की भाँति पीछे-पीछे चलने वाली संसार की समस्त विभूतियां स्वयं ही उसके वश में हो जाती हैं।
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