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झूठी प्रीत
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अखा की ईमानदारी । अपने जीवन में उसने कभी भी किसी के सोने में कुछ बेईमानी नहीं की ।
एक सद्गृहणी के साथ अखा का बहन जैसा पवित्र स्नेह था । उस बहन ने एक बार अखा को तीन सौ रुपये दिए और एक सुन्दर कंठमाला बना देने के लिए कहा ।
अखा ने बहन का काम पूरी आत्मीयता के साथ किया, उसमें सौ रुपये का सोना अपनी ओर से भी मिला दिया और सुन्दर कंठमाला तैयार कर के बहन को दी ।
कंठमाला का वजन अधिक देखकर बहन के मन में बम का भूत घुस गया । सोचा, अखा आखिर सुनार हो तो है, हो सकता है इसका वजन बढ़ाने के लिए कुछ और चीज मिलादी हो । वह दूसरे सुनार के पास दौड़ी गई और कंठमाला के सोने की परीक्षा करवाई !
सुनार ने परीक्षा करके बताया - यह सोना तो विल्कुल शुद्ध है, तुमने कितने में बनवाई है ?
बहन ने कहा- 'मैंने तो अखा को तीन सौ रुपये दिये थे !"
सुनार ने हँसकर कहा - " बाबली ! अखा पर भी बहम करती है ? इस में तो चार सौ रुपये का सोना है, और मजूरी के रुपये अलग !'
बहन को अपने झूठे बहम पर पश्चात्ताप हुआ। वह दौड़कर अखा के पास गई और रोती हुई अपनी बात सुनाई । सुनते ही अखा की आँखें खुल गई ।
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