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झूठी प्रोत
संसार का स्नेह और प्रेम वास्तव में कांच की बोतल के समान है, जो संदेह की जरा-सी ठेस लगते ही टूट जाता है । उस स्नेह में पद-पद पर शंका, भय और अविश्वास के कांटे बिछे रहते हैं । स्वार्थ की दुर्गन्ध छिपी रहती है । तथागत बुद्ध ने इसीलिए कहा था
स वे मित्तो यो पहि अभेज्जो
- सुत्तनिपात २११५/३
मित्र औरे मंत्री की कसौटी यही है कि वह परशंका, संदेह आदि से कभी भंग न हो। जो शंका, संदेह एवं अविश्वास की ठोकर से टूट जाती है, वह मंत्री झूठी है, ज्ञानीजन उस मंत्री पर कभी आश्वस्त नहीं होते !
गुजरात के प्रसिद्ध ओलिया संत अखा, अपने पूर्व जीवन में अहमदाबाद में स्वर्णकार का धंधा करते थे । सुनार की ठगी प्रसिद्ध है, पर उससे भी ज्यादा प्रसिद्ध थी
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