SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८ मृत्यु नहीं चाहिए IPL कभी-कभी एक विचार बिजली की तरह मन में कोंध जाता है-मनुष्य कितना भी दुःख और संकट में पड़ा हो, कितनी ही वेदना और यंत्रणा से तड़प रहा हो, पर फिर भी वह चाहता है-"जीता रहूँ। कुछ दिन और जी लूं !" क्या यह जीवन का मोह नहीं है ? फिर सोचता हूं-"कुछ मनुष्य जीवन की पीड़ाओं से घबरा कर आत्महत्या क्यों कर लेते हैं ? अनेक लोगों को दुःख की ज्वालाओं में जलते यह पुकार लगाते सुनता हूँ- "हे परमात्मा ! अब तो उठा ले ! मौत क्यों नहीं आती? इस जीने से तो मरना अच्छा !" क्या वे सचमुच जीवन से निर्मोह हो गए हैं ? ___ कुछ गहराई में उतरता है और उनके अवचेतन को टटोलता हूँ तो पाता हूं-दोनों में ही एक समान जीने की तीव्र इच्छा है। मौत-मौत पुकारने वाला भी मौत की कल्पना से सिहर उठता है। जीवन को दुत्कारना सरल Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy